मिल्खा सिंह
जन्म: 20 नवम्बर 1929, गोविन्दपुरा (पाकिस्तान)
भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का 91 साल की उम्र में निधन, कोविड 19 से थे संक्रमित
मिल्खा सिंह 91 साल की जिंदगी की रेस खत्म करके भारत मां का यह बेटा तो अब दुनिया छोड़कर जा चुका है और उनकी जिंदगी एक ऐसी इंस्पिरेशनल स्टोरी है जो हमेशा याद रखी जाएगी।
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर, 1929 में लालपुर में हुआ था। ज्ञानपुर उस समय हिंदुस्तान में ही था पर बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। मिल्खा सिंह के पिता लालपुर के एक बहुत ही इज्जतदार किसान थे।
2 ट्रेनिंग की शुरुआत उस समय हो गई थी जब वह स्कूल में पढ़ा करते थे वह अपने गांव से 10 किलोमीटर दूर स्कूल जाया करते थे। जिस 10 किलोमीटर के सफर में वह कई बार दौड़ कर भी जाया करते थे
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कत्लेआम मच गया। किसी के बहुत से लोग पाकिस्तान से भारत और बहुत से लोग भारत से पाकिस्तान अपनी अपनी जान बचाने को भाग रहे थे। लेकिन मिल्खा देखकर पिता ने यह फैसला लिया कि वह अपनी धरती अपनी जमीन छोड़कर नहीं जाएंगे। कुछ दिनों के बाद ही मिल्खा सिंह के पिता और और भी घर वालों को मिल्खा सिंह के सामने ही मार दिया गया। पर मिल्खा सिंह वहां से भागकर निकल आए और वह हिंदुस्तान आ गई
हिंदुस्तान आकर उन्हें उन लोगों के साथ दिल्ली में रखा गया जिनके पास अपना घर नहीं था और अपनी कई महीनों से बिछड़ी बहन से मिले। पेरेंट्स के अलावा मिल्खा की बहन की थी जो उनका ख्याल रखती थी कुछ दिन कैंप में रहने के बाद मिलना और उनकी बहन को रहने के लिए घर mila
हिंदुस्तान आंध्र मिल्खा सिंह ट्रेनों के साथ भी रेस लगाती थी। वह बहुत कुर्ती ले थे और अब इंडियन आर्मी ज्वाइन करना चाहते थे
इंडियनआर्मी में भर्ती देखते हुए मिल्खा सिंह एक के बाद एक लगातार तीन बार रिजेक्ट हुए। पर हार मानना तो उन्होंने कभी सीखा ही नहीं था। चौथी बार के प्रयास में उनका सिलेक्शन इंडियन आर्मी में हो गया
आर्मी जॉइन करने से पहले भी मिल्खा सिंह ने कटक में 200 और 400 मीटर रेस में हिस्सा लिया था। ना सिर्फ उन्होंने यह रेस जीती हुई बल्कि उन्होंने यहां नेशनल रिकॉर्ड बना दिया
मिल्खा सिंह आर्मी में पहुंचकर भी सपोर्ट में हिस्सा लेने लगे। दूध पीना बहुत पसंद था। इसीलिए उन्होंने आर्मी स्पोर्ट्स कोटा चुनावी दौड़ करते देख उन्हें एक दिन अध्यापक द्वारा चैलेंज किया गया और उस चैलेंज को सेट करते हुए मिल्खा सिंह ने उस रेस में हिस्सा लिया और सब को हराकर हैरान कर दिया और इसके।एथलेटिक की स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुन लिया गया
स्पेशल ट्रेनिंग लेते हुए मिल्खा ने खुद को बहुत इंप्रूव कर दिया। मिल्खा सिंह ट्रेन इतनी कड़ी किया करते थे उनके पसीने से 2 लीटर की बोतल भर जाए। ट्रेनिंग करते हुए कई बार उनके पैरों से खून भी आने लगता था
। उनकी कड़ी मेहनत का ही नतीजा था कि उसी दौरान जब पटियाला में प्रतियोगिता का आयोजन हुआ तो वहां उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में एक नेशनल रिकॉर्ड बना दिया उन्होंने। ही रेट 47 पॉइंट 9 सेकेंड में पूरी कर दी। इससे पहले यह रिकॉर्ड 48 सेकंड का था नंबर इलेवन पटियाला में रिकॉर्ड ब्रेकिंग परफॉर्मेंस के बाद मिल्खा सिंह को 1956 में होने जा रही मेलबर्न ओलंपिक में जाने का मौका मिल गया। मेलबर्न ओलंपिक मिल्खा सिंह का पहला ओलंपिक का एक्सपीरियंस की कमी की। वजह से वह यहां कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाए। मेल में हाथ के बाद मिल्खा सिंह को खुद पर बहुत गुस्सा आया क्योंकि उन्होंने यहां कुछ।ऐसी गलतियां की थी जो नहीं करनी चाहिए थी इन सब से सबक लेकर मिल्खा सिंह ने अपनी ट्रेनिंग बढ़ा दी
मिल्खा सिंह ने शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने इस जन्म दिया उसमें 200 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल अपने नाम किए और 1958 में ही कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने 400 मीटर गोल्ड मेडल जीता। कॉमनवेल्थ में उन्होंने पाकिस्तान के अब्दुल खालिद को हराया था और इस हार का उन पाकिस्तानी एथलीट को बहुत दुख हुआ था
एक बार फिर ओलंपिक में खेलने का मौका मिला। यह ओलंपिक में हुआ था रोम ओलंपिक में जाने से पहले मिल्खा सिंह ने 80 रेसों में हिस्सा लिया था जिनमें उन्होंने शायदसके इसलिए सबको उम्मीद थी सभी को मीटिंग है तो यह फोटो ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने।
अच्छा प्रदर्शन किया और एक के बाद एक लिस्ट जीते हुए फाइनल में पहुंच गए। फाइनल में भी रेस शुरू होने के कुछ ही सेकंड के बाद में सबसे आगे निकल गए और वह यहां बहुत नर्वस थे। उन्हें लगा कि वह काफी आगे हैं। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा इस पेंटिंग में 11 पास बहुत मायने रखता है। मिल्खा के पीछे देखते ही उसकी स्पीड थोड़ी सी कम हुई। औरतें ऐसी कौन सी आगे निकल गए। मिल्खा सिंह यह फाइनल हार चुकी थी जिसका उन्हें अफसोस पूरी जिंदगी रहा नंबर सेव कीमें मिल्खा सिंह पाकिस्तान की तरफ से चैलेंज की तरह आमंत्रित किया गया। पाकिस्तान जाने से मना कर दिया क्योंकि यहां उनकी मां बाप के कत्ल की दर्दनाक यादें जुड़ी हुई थी लेकिन पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे प्रताप के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह से बोला देता है। आज देश के लिए तो इस प्रतियोगिता में हिस्सा लो।
प्रधानमंत्री की बात मानकर मिल्खा सिंह पाकिस्तान जाने को तैयार हो गए नंबर से विनती इंडिया और पाकिस्तान का आज की क्रिकेट की तरह तब काहे टेंशन में था पाकिस्तान की तरफ से वही एक् रेस में हिस्सा ले रहे थे कि 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह ने हराया था। पाकिस्तानी एथलीट अब्दुल खालिद का इरादा तो हार का बदला लेने का था जो 2 साल पहले मिल्खा सिंह से हुई थी नंबर 13 जब वह शुरू हुई तो मिल्खा सिंह एक झटके में सबसे आगे निकल गए। उनके आसपास कोई भी नहीं था उनकी रफ्तार को वहां बैठे सभी लोग देखकर हैरान रह गए। पाकिस्तानी एथलीट अब्दुल यह रेस खत्म होने तक मिल्खा सिंह से कई मीटर पीछे रह गए थेी। मिल्खा सिंह की रफ्तार देखकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को मेडल पहनाते हुए कहा, आज तुम दौड़े नहीं हो रही हूं। भाइयों खान ने ही उनको फ्लाइंग सिख नाम दिया।
मिल्खा सिंह की जिंदगी पर एक मूवी भी बन चुकी है जिसका नाम भाग मिल्खा भाग है जब मिल्खा सिंह के पिताजी का कत्ल हुआ तब यही शब्द थे जो इस मूवी का नाम है मिल्खा सिंह की जिंदगी पर बनी यह मूवी हिंदुस्तान की सबसे बड़ी मोटिवेशनल मूवी में से एक है नंबर 201 भाग मिल्खा भाग मूवी के लिए अपनी पूरी जिंदगी की कहानी बताई तो उन्होंने डायरेक्टर ओमप्रकाश मेहरा से ₹1 फीस जांच की थी। नंबर 202 पर मूवी तो बनी है पर इसके अलावा उनकी लाइन पर एक किताब भी लिखी हुई है इस किताब का नाम द रेस ऑफ माय लाइफ है जो मिल्खा सिंह और उनकी बेटी ने मिलकर लिखी है नंबर 203 मिल्खा सिंह की इच्छा हमेशा यही रही कि जो साल 1960 में ओलंपिक में उनके हाथ से गोल्ड मेडल चला रहा है उसे कोई भारतीय एथलीट लेकर आए लेकिन रनिंग में तो नहीं पर बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा इंडिया के लिए पहला मात्र गोल्ड मेडल
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